Atal Bihari Vajpayee birthday: 'हारे नहीं, सबके संग कदम मिलाकर चले अटल...'
Atal Bihari Vajpayee birthday: 'हारे नहीं, सबके संग कदम मिलाकर चले अटल...'
'हारे नहीं, सबके संग कदम मिलाकर चले अटल,
अंतिम पायदान पर रहने वालों के हित गले अटल,
भले रहूं या न रहूं मेरा देश रहे यह सपना था,
सूरज सम परमार्थ भाव में देश निमित ही जले अटल'
देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर उनकी याद में विद्यापति भवन में काव्य के विभिन्न रसों की धार सी बह गई। कवयित्री मनीषा श्रीवास्तव की इन पंक्तियों से अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धा स्वरूप दी जाने वाली काव्यांजलि की शुरुआत हुई। इसके बाद तो डॉ. बुद्धिनाथ मिश्रा, डॉ. सरिता शर्मा, सुरेश अवस्थी, मनवीर मधुर, आराधना प्रसाद, कीर्ति माथुर और प्रख्यात मिश्र जैसे देश के नामचीन कवि-कवयित्रियों ने अटल जी की याद में अपनी ढेरों रचनाएं समर्पित कीं।
मंच का संचालन चर्चित कवि गजेंद्र सोलंकी ने किया। अवसर था नीरज स्मृति न्यास द्वारा आयोजित 'अटल काव्यांजलि' में कवि गोष्ठी का। राज्यपाल फागू चौहान ने काव्यांजलि का उद्घाटन किया। उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, सांसद आरके सिन्हा, सहकारिता मंत्री राणा रणधीर सिंह, सांसद रामकृपाल यादव, विधायक संजीव चौरसिया, पूर्व विधायक प्रेम रंजन पटेल सहित कई भाजपा नेता अटल काव्यांजलि में मौजूद रहे।
राज्यपाल फागू चौहान ने इस अवसर पर अटल जी को याद करते हुए कहा कि वे ओजस्वी वक्ता और दूरदर्शी चिंतक तो थे ही, उनका व्यक्तित्व भी सभी को सहज रूप से आकर्षित करने वाला था। अटल जी देश के सफलतम और लोकप्रिय प्रधानमंत्रियों में से एक थे। सांसद आरके सिन्हा ने भी अटल जी के साथ बिताए क्षण और यादों को साझा किया।
काव्यांजलि में प्रसिद्ध कवि डॉ. बुद्धिनाथ मिश्रा ने अटल जी को समर्पित कविता 'तुम अटल बिहारी थे हम अटल बिहारी हैं, अंधकार से अपनी अब भी जंग जारी है...' पढ़ी। इनकी काव्य रचना 'जो सजा मिली जिसको काटना उसे ही है...' को तालियां बजाकर दर्शकों ने सराहा। गजेंद्र सोलंकी की कविता 'भारत के परिंदों की जग में पहचान तो जिंदा है, रहें कहीं भी दिल में हिंदुस्तान तो जिंदा है...' को हॉल में मौजूद दर्शकों ने समवेत स्वर में गाया। देश भक्ति के रस में डूबी इनकी रचना 'भारत जिंदाबाद बोलती नदियों की हर धारा है, जहां हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है...' की भी तालियां बजाकर सराहना हुई।
डॉ. सरिता शर्मा ने देश भक्ति और प्रेम रस में डूबी अपनी रचनाएं सुनाईं। 'सपनों के नशेमन को फिर एक बार सजाना, होली दीवाली ईद को मिलजुल कर मनाना...' और 'सारी दुनिया से दूर हो जाऊं तेरी आंखों का नूर हो जाऊं...' जैसी इनकी रचनाएं खूब सराही गईं। प्रख्यात कवि सुरेश अवस्थी ने अटल जी को समर्पित करते हुए रचना 'जैसे थे वैसे दिखे पहने नहीं नकाब, कांटों के भी घर मिले बनकर खिले गुलाब...' पढ़ी तब हॉल भावविह्वल हो गया। कार्यक्रम का प्रारंभ कीर्ति माथुर ने सरस्वती वंदना गाकर किया।
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